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________________ भगवान् महावीर १८ भारतवर्ष के सामाजिक और धार्मिक इतिहास में यह काल बड़ा ही भोषण था । यह वह समय था जब मनुष्य अपने मनुज्यत्व को भूल गये थे-सत्ताधारी लोग अपनी सत्ता का दुरुपयोग करने लग गये थे, बलवान निर्बलों पर छुरा तान कर खड़े हो गये थे, और वे लोग पोसे जा रहे थे जिन पर समाज को पवित्र सेवा का भार था। समाज के अन्तर्गत अत्याचार की भट्टी धधक रही थी। धर्म पर स्वार्थ का राज्य था; कर्तव्य सत्ता का गुलाम था, करुणा पाशविकता की दासी थी, मनुष्यत्व अत्याचार पर बलिदान कर दिया गया था । शूद ब्राह्मणों के गुलाम थे, स्त्रियां पुरुषों के घर को सम्पत्ति-मात्र समझी जाने लगी थीं, प्रेम का नामों निशां केवल प्राचीन ग्रन्थों में रह गया था। सारे समाज में "जिसकी लाठी उसकी भैंस" वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी। मतलब यह है कि ब्राह्मणों के अत्याचारों से सारा भारत क्षुब्ध हो उठा था, सब लोग एक ऐसे पुरुष की प्रतीक्षा कर रहे थं जो अत्याचार की उस धधकती हुई भद्दी को बुझा कर समाज में शान्ति की स्थापना करे जो अपने गम्भीर विचारों से भटके हुए लोगों को राह पर लगादे, जो अपने दिव्य सदुपदेश से लोगों की आत्म पिपासा को शान्त कर दे । एवं जो मनुष्यों को मनुः ष्यत्व का पवित्र सन्देशा सुना कर उस अशान्ति का नाश कर दे या यों कहिये कि जो नष्ट हुए धर्म को संशोधित कर नवोन विचारों के साथ नवीन रूप में जनता के सम्मुख रक्खे । . समाज के अन्तर्गत जब इस प्रकार की आवश्यकता होती है तन प्रकृति उसे पूरी करने के लिए अवश्य किसी महापुरुष को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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