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________________ भगवान् महावीर २०२ काल की तरह वहां से निकला। उस सिंह को पैदल अपनेकों सवार, एवं उसे निःशस्त्र और अपने आपको सशस्त्र देख कर "त्रिपुष्ट" ने विचारा कि यह युद्ध तो समान युद्ध नहीं है । यह सोच कर वह सब अस्त्र शस्त्र को फेंक कर रथ पर से उतर पड़ा। यह देखते ही उस सिंह को जाति स्मरण हो आया। उसने अत्यन्त क्रोधान्वित हो “त्रिपुष्ट" पर आक्रमण किया, पर त्रिपुष्ट ने बहुत शीघ्रता के साथ एक हाथ उसके नीचे के जबड़े में और दूसरा ऊपर के जबड़े में डाल दिया और अपने अखण्ड पराक्रम से उसके मुंह को चीर दिया। सिंह घायल होकर गिर पड़ा। एक साधारण निःशस्त्र मनुष्य के द्वारा अपनी यह दशा देख कर वह बड़ा दुखी हो रहा था, उसी समय इंद्रभूति गणधर के जीव ने जो कि उस समय "त्रिपुष्ट" का सारथी था, उस सिंह को प्रबोधा, जिससे शान्ति पाकर सिंह ने प्राण त्याग किया। उधर दोनों कुमार अपना कर्तव्य पूर्ण कर वापस पोतनपुर आ गये। इस घटना को सुन कर "अश्वग्रीव" त्रिपुष्ट से बहुत डरने लगा, उसने कपट के द्वारा इन दोनों ही कुमारों को मार डालने की योजना की, पर जब वह सफल न हुई तो उसने उनके साथ प्रत्यक्ष युद्ध छेड़ दिया। इसी युद्ध में वह स्वयं त्रिपुष्ट के हाथों मारा गया। : इसके पश्चात् त्रिपुष्ट ने दिग्विजय करना आरंभ किया। अपने पराक्रम से दक्षिण भरतक्षेत्र तक विजय कर वे वापस पोतनपुर लौट आये। इस विजय में उन्हें कई अत्यन्य मोहक कण्ठवाले गायक भी मिले थे। एक बार रात्रि के समय उन गायकों का गाना हो रहा था, और वासुदेव पलंग पर लेटे हुए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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