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भगवान् महावीर
१९८ था जिसकी “धारिणी" नामक स्त्री थी। मरीचि का जीव पूर्व भव में उपार्जित किये हुए शुभ कमों के उदय से "धारिणी" के गर्भ में आया। जन्म होने पर इसका नाम “विश्वभूति" रक्खा गया। बालकपन से विकास करते करते क्रम से “विश्वभूति" ने यौवन में पदार्पण किया । एक बार नन्दनवन में इन्द्र के समान 'विश्वभूति अपने अन्तः पुर सहित “पुष्पकरण्डक" नामक उद्यान में क्रीड़ा कर रहा था। इतने ही में राजपुत्र विशाखनन्दी भी क्रीड़ा करने की इच्छा से वहां आया । पर भीतर विश्वभूति को देख कर वह बाहर ही ठहर गया । इतने में प्रियङ्ग रानी की दासियां फूल लेने की इच्छा से वहां आई और उन दोनों में से एक को भीतर और दूसरे को बाहर देख कर वे वापस लौट गई एवं रानी को जाकर यह सब हाल कहा । अपने पुत्र के इस अपमान को सुन रानी बड़ी क्रोधित हुई और वह तत्कालीन ही कोपभवन में चलो गई । राजा ने यह सब हाल जाना और रानी की इच्छा पूरी करने के निमित्त उसने एक कपट जाल रचा;
और यात्रा की तैयारी करवाई । उसने राज सभा में जाकर कहा हमारा "पुरुष सिंह" नामक सामन्त बलवाई हो गया, है अतः उसे दबाने के लिये मैं जाता हूँ। यह संवाद सुनकर सरल स्वभाव विश्वभूति उद्यान से घर आया और राजा से उस कार्य का भार अपने ऊपर लेकर वह सेनासहित. चला । वहा पहुंच कर उसने पुरुष सिंह को बिल्कुल अनुकूल पाया जिससे वह लौट कर वापस आया। मार्ग में वह पुष्पकरंडक वन के पास आया । वहां के द्वारपाल से उसे मालूम हुआ कि अन्दर विशाखनन्दी कुमार है । यह सुनकर उसने सोचा कि मुझे कपटपूर्वक पुष्पकShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com