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________________ भगवान महावीर १८४ है। वह अपने स्वातन्त्र्य और व्यक्तित्व को किस प्रकार दुनियां के सन्मुख उपस्थित कर सकता है इस ओर ध्यान दें ।" । आज कल के बुद्धि-वादी काल में मनुष्य का हृदय बुद्धिगर्व से इतना अधिक संकीर्ण हो गया है कि वह व्यक्ति को शक्ति पर विश्वास करने में बहुत हिचकता है । परिस्थितियों के बन्धनों को ठोकरों से उड़ाता हुआ और बाधाओं के जाल को काटता हुआ यदि कोई मनुष्य दुनियां में महानता की ओर अग्रसर होता है तो हम उसके स्वातन्त्र्य बल को स्वीकार कर उसकी ओर पूज्य भावनाएँ प्रकट करने में बड़ो आना कानी करते हैं और एक बड़े दार्शनिक की तरह गम्भीर आवाज़ में कह देते हैं कि, उसमें कोई नई बात नहीं। महावीर का जन्म ऐसी परिस्थिति में हुआ था कि जिसमें रह कर वैसी शक्ति प्राप्त करना अत्यन्त आसान थी। अब वह परिस्थिति नष्ट हो गई है। इस कारण अब ऐसे मनुष्यों का उत्पन्न होना भी दुष्कर है। इस प्रकार कह कर बुद्धिवादी मनुष्य अपनी आत्मा को सन्तोष देते हैं। और इसी प्रकार अपने में पाये जानेवाले कुदरती गुणों को दबा कर आत्मघात करने को तैयार हो जाते हैं। यह आत्मघात आधुनिक काल में पहले सिरे की बुद्धिमानी और ज्ञान समझा जाता है। भगवान् महावीर देव थे, वे एक राजपुत्र थे। पूर्वभव में उन्होंने अच्छे कर्म किये थे । परिस्थिति उनके अनुकूल थी। कौटुम्बिक सुख उन्हें प्राप्त था। आदि ये सब बातें हमें प्राप्त नहीं हैं। इसीलिए हम उनके समान नहीं हो सकते। यदि वे भी हमारी ही स्थिति में होते तो कदापि इतनी उच्च स्थिति को प्राप्त न करते । इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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