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________________ भगवान् महावीर १८० उन्होंने कई सुदृढ़ अनुमान प्रमाण भी दिये हैं। पर उनमें सत्य का कितना अंश है यह नहीं कहा जा सकता। जो हो, पार्श्वनाथ के अनुयायियों ने प्राचीन और नवीन भिक्षुओं की एक महासभा में इस परिवर्तन को स्वीकार कर लिया। कितने ही विद्वानों का मत है कि इस समझोते में वस्त्र रखने तथा न रखने का जो मतभेद शान्त हुआ था। वही आगे चल कर भद्रबाहु के समय में फिर खड़ा हो गया और उसी समय जैन साधुओं में श्वेताम्बर और दिगाम्बर के फिरके पड़ गये । शिष्य और गणधर कल्पसूत्र के अन्तर्गत भगवान महावीर के गणधरों, मुनियों, आणिकाओं, श्रावकों और श्राविकाओं की संख्या उनका दरजा, कुल तथा गौत्र का विस्तृत विवरण दिया गया है। पाठकों की जानकारी के निमित्त संक्षिप्त रूप से उनका विवरण यहाँ दिया जाता है:नाम शिष्य १. इंद्रभूति गोतम गोत्र ! ५०० श्रमण २. अग्नि भूति एक वृक्ष ३. वायु भूति ४. आर्ण्य व्यक्त भरद्वाज गोत्र सुधर्माचार्य अग्निवैश्यायन गौत्र) मण्डी पुत्र वसिष्ट गौत्र १२५० श्रमणों का १ वृक्ष ७. मौर्य पुत्र काश्यप गोत्र (२५० ,, का एक वृक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com गौत्र , ง่
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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