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________________ १७७ भगवान् महावीर लिया था के समान राष्ट्रीय धर्म को भी भारतवर्ष में खड़े रहने को आज स्थान नहीं है। जब कि जैन-धर्म कई विपत्तियों के समूह से टकगते रहने पर भी कई क्रान्तियों के बीच गुजरते हुए भी-आज अपने बारह लाख अनुयायी रखता है। इसका मूल कारण केवल महावीर की उपदेश शैली ही थी । यदि काल के कुछ चक्र में पड़ कर हमारे ही लोगों के द्वारा इस शैली में विकार उत्पन्न न किया जाता तो आज जैन. समाज और जैन साहित्य की दशा कुछ और ही होती। हास का जो चक्र हमारे समाज को लग रहा है, क्षय की जो भयङ्कर बीमारी हमारी जाति का लग रही है यदि महावीर की शैली जीवित रहती तो कदापि न लगती । अस्तु ! ___कैवल्य प्राप्ति के अनन्तर भगवान ने अपने उपदेश को प्रारम्भ किया । उनका पहला उपदेश बिल्कुल व्यर्थ गया। बाद के उप। देशों से उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ना प्रारम्भ हुई। उनका ४३ वर्ष से लेकर ७२ वर्ष तक का दीर्घ जीवन केवल लोक कल्याण के हितार्थ गया। उनके किये हुए मुख्य कामों को नामावली इस प्रकार है। १-जाति पांति का जरा भी भेद रक्खे बिना हर एक मनुष्य के लिये-शूद्र और अति शुद्र के लिए भो-भिक्षु पद और गुरु पद का रास्ता खुला करना । श्रेष्ठता का आधार जन्म नहीं बल्कि गुण, और गुणों में भी पवित्र जीवन की महत्ता स्थापित करना । २-पुरुषों की तरह स्त्रियों के विकास के लिये भी पूरी स्वतन्त्रता को योजना करना और विद्या तथा प्राचार दोनों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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