SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर १७२ चित्त, चैतन्य, विज्ञान और संज्ञा आदि लक्षणों से जानी जा सकती है। यदि जीवन नहीं है तो फिर पुण्य और पाप का पात्र कौन रह जाता है और तेरे इस योग, यज्ञ दान करने का निमित्त कौन हो सकता है ? इस प्रकार महावीर ने उसका पूर्ण समाधान कर दिया, इस समाधान से तथा प्रभु के जगदद्वैत साम्राज्य को देखने से इन्द्रभूति ने दीक्षा स्वीकार कर ली। इन्द्रभूति वीरप्रभु के प्रथम शिष्य हुए, इस बात को सुन कर अग्निभूति, वायुभूति, सुधर्माचार्य, आदि दस पण्डित और अपनी अपनी शंकाओं को ले कर आये, उन सबका समाधान वीरप्रभु ने बहुत उत्तम ढङ्ग से कर दिया । इस पर वे सब वीरप्रभु के शिष्य हो गये । ये ग्यारहों पण्डित भगवान महावीर के गणधर कहलाये । उपदेश का प्रारम्भ अब भगवान महावीर ने उस सत्य का सन्देश जिसे उन्हें अत्यन्त कठिन तपश्चर्या के पश्चात् प्राप्त किया था सारे विश्व को देना प्रारम्भ किया, एक विद्वान् का यह कथन बिलकुल ठीक है कि महापुरुषों का प्रत्येक कार्य्य जगत् के स्वार्थ के निमित्त हुआ करता है । कवि मिल्टन का कथन है कि : It is death to hide one's tallent which "God had Given him. भगवान महावीर ने समस्त जगत् के कल्याण के उद्देश्य से अपना उपदेश देना प्रारम्भ किया । सब से पहले उन्होंने इस बात की घोषणा की कि जगत् का प्रत्येक प्राणी जो अशान्ति, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy