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________________ १६३ भगवान् महावीर नाओं के कारण जातियां नष्ट हो जाती हैं, देशं गुलाम हो जाते हैं और साम्राज्य बिखर जाते हैं। और इन्हीं भावनाओं के कारण मनुष्य के नैतिक जीवन का नाश हो जाता है जो कि सब अनिष्टों की जड़ है । वासुदेव के भव में अपने शैय्यापालक के कान में गर्म गला हुआ शीशा डालने की जो क्रूर सज़ा महावीर ने दी थी । उसके अन्तर्गत रहे हुए उग्र और निष्ठुर परिणाम इस भव में उदय हुए-प्रचंड असाता वेदनीय कर्म के कारण रूप थे । एक छोटे से अपराध के बदले में ऐसे भयङ्कर दण्ड की व्यवस्था देते समय वासुदेव के हृदय के अन्तर्गत जो स्वार्थ भावना और तीब्र घातक प्रवृति समा रही थी, उसके फल स्वरूप महावीर को इस भव में वैसी ही सजा का मिलना आवश्यकता था । इसमें जरा भी सन्देह नहीं। ___ अपनी सत्ता का दुरुपयोग एक निर्बल मनुष्य पर करना बहुत ही बड़ा पाप है । हमसे कोई जबाब तलब करने वाला नहीं है । हमारे सेवक का जन्म मरण हमारे बायें हाथ का खेल है, इस प्रकार की भावनाओं को हृदयङ्गम कर एक निर्बल सेवक पर मनमाना अत्याचार करना मनुष्यत्व के बिलकुल विरुद्ध है। उसका भयङ्कर बदला प्रकृति अवश्य चुका देगी। वासुदेव का सेवक एक निराधार मनुष्य था। उसके पास उनकी दो हुई सजा का विरोध करने के लिये रंच मात्र भी शक्ति न थी। ऐसी हालत में वासुदेव को अपनी र भावना पर अंकुश रखने की नितान्त आवश्यकता थी। जिस हालत में कि कोई मनुष्य हमारी आज्ञा के विरुद्ध टससे मस नहीं कर सकता। उस हालत में उसको सजा देते समय मनुष्य को बहुत विवेक बुद्धि से काम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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