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________________ १५७ भगवान् महावीर L निरोध करके वे समाधिस्थ हो गये । उस मार्ग में एक गुवाल अपने दो बैलों को साथ लेकर निकला, उस स्थान पर आते आते उसे किसी आवश्यकीय कार्य का स्मरण हो आया जिससे वह बैलों की रक्षा के निमित्त प्रभु को चेतावनी देकर पला गया । पर प्रभु तो ध्यान में थे, उनका ध्यान गुवाल के उस कथन पर अथवा बैलों की ओर बिलकुल न गया, और इसलिए उन्होंने उस गुवाल को कुछ भी उत्तर न दिया । इधर गुवाल भी "मौनं सम्मति लक्षणं" यह समझ कर चल दिया । दैवयोग से बैल चरते चरते वहाँ से कुछ दूर निकल गये । बहुत देर पश्चात् वह गुवाल पुनः वहाँ आया, वहाँ आकर उसने देखा कि उन दोनों बैलों का पता नहीं है। उसने भगवान् से बैलों के विषय में पूछा। पर प्रभु पहले ही के समान उस समय भी मौन रहे। उसने बार बार प्रभु से पूछा पर वे उसी अवस्था में मौन रहे। इससे उसे अत्यन्त क्रोध चढ़ आया। उसे उनकी ध्यानस्थ अवस्था का रत्ती भर भी भान न था । प्रभु का यह मौन धारण उनके कर्म के उदय में निमित्त रूप हो रहा था। इस प्रसङ्ग पर गुवाल के द्वारा कर्म की फलदात्री सत्ता के उदय का काल आ पहुँचा था, प्रभु के पूर्वभव में किये हुए पापों का फल मिलने का अवसर बिल्कुल समीप आ गया था। इस कष्ट की उत्पत्ति का कारण प्रभु ने त्रिपुष्ट वासुदेव के भव में उत्पन्न किया था। इस गुवाल का जीव उस समय त्रिपुष्ट वासुदेव का शैय्यापालक था। एक बार वासुदेव निद्रामन होने की तैयारी में थे, उस समय कई गायक उनके पास नाना प्रकार के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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