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________________ भगवान् महावीर १३६ प्रदान करने लग जाते हैं । वे एक साथ अपना चूकता कर्ज वसूल करने को तैयार हो जाते हैं। मोक्ष के मार्ग में विचरण करने वाली आत्मा को कई बार असाधारण संकटो का सामना करना पड़ता है इसी तत्व को साधारण लोगों में प्रचलित करने के निमित्त अनेक उत्तम ग्रन्थकारों ने "उपमिति-भवप्रपंच कथा" "मोहराजा का रास" "ज्ञान सूर्योदय नाटक" आदि ग्रन्थों का निर्माण किया है। इन ग्रन्थों के द्वारा उन लोगों ने यह बात स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि मोक्ष मार्ग के पथिक के मार्ग में मोहराजा के सुभट हमेशा अनेक विघ्न डालते रहते हैं । जो दर्शन-शास्त्र ईश्वर को सृष्टि का कर्ता मानते हैं वह इसी बात में "प्रभु भक्तों की परीक्षा लेते हैं," आदि रूप में कहते हैं। कोई उसको रक्त बीज और कोई उसको (Dwellers on the thresh hold ) कहते हैं । मतलब यह कि मोक्ष मार्ग में अग्रसर होने वाले व्यक्ति के मार्ग में अनेक कष्टों की परम्परा उपस्थित होती रहती है। लेकिन इसी की दूसरी बाजूपर एक बात और भी है। जिससे यह कठिन समस्या कई अंशो में आसान हो जाती है । वह यह है कि उन लोगों पर आये हुए कष्ट हम लोगों की दृष्टि में जितने भयङ्कर जंचते हैं, हम लोगों की क्षुद्र एवं ममता-मयी निगाह में उनका जितना गम्भीर असर होता है, उतना असर उन लोगों पर जो मोक्षपथ के पथिक हैं, एवं जिनका दैहिक मोह शांत हो गया है, नहीं होता । जिस स्थिति को केवल शास्त्रों में पढ़कर ही हमारा हृदय थर्ग उठता है। उस स्थिति का प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करते हुए भी वे उतने नहीं हिचकते । इसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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