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भगवान् महावीर
हालत में मोक्ष गये। बल्कि महावीर के जीवन का महत्व इसी में है कि, मनुष्य जाति के अन्दर पैदा होकर भी, उस वायुमण्डल में जन्म लेकर भी उन्होंने परम पद को प्राप्त किया । महावीरस्वामी यदि प्रारम्भ से ही अलौकिक थे, और यदि उन्होंने अलौकिकता में से ही अलौकिक पद प्राप्त किया, तो इसमें उनका कोई वीरत्व प्रदर्शित नहीं होता और न उनका जीवन ही हम लोगों के लिये आदर्श हो सकता है। क्योंकि हम लोग तो लौकिक हैं। हमें तो लौकिकता में से अलौकिकता प्राप्त करना है। हमें तो नर से नारायण होना है। इसलिए हमारे लिये उसी मनुष्य का जीवन आदर्श हो सकता है जो हमारी तरह मनुष्य रहा हो और उसी मनुष्यत्व में से जिसने दैवत्व प्राप्त किया हो । सारी मनुष्य जाति को इसी प्रकार के आदर्श की आवश्यकता है।
मनुष्य प्रकृति के अन्दर निर्बलता की जो बिन्दुएँ हैं, मनुष्य के मनोविकारों में कमजोरी की जो भावनाएँ हैं और भावनाओं को नष्ट करने के निमित्त जिस पुरुषार्थ की आवश्यकता है वह पुरुषार्थ यदि भगवान महावीर में न था, यदि वे किसी अलौकिक शक्ति के प्राप्त से इतने ऊँचे पद को प्राप्त हुए तो इसमें उनकी क्या विशेषता ? वह तो प्रकृति का हो काम था, इस प्रकार के महावीर तो संसार के आदर्श नहीं हो सकते ।
लेकिन वास्तविक बात इस प्रकार की नहीं है, महावीर के विषय में इस प्रकार की धारणा करना हमारी भूल है, उसमें हमारा ही दोष है । यदि हम सूक्ष्म दृष्टि से महावीर के जीवन
का अध्ययन करें तो हमें मालूम होगा कि, महावीर का जीवन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com