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________________ बौद्ध-कालीन भारत ७२ जीवन ही बौद्धों का अन्तिम उद्देश्य है। इस पृथ्वी पर पुण्यमय शान्ति ही बौद्धों का निर्वाण है । बुद्ध ने संसार के इतिहास में पहले पहल यह प्रकट किया कि प्रत्येक मनुष्य स्वयंअपने लिये इसी संसार और इसी जीवन में बिना ईश्वर या छोटे बड़े देवताओं की कुछ भी सहायता के मुक्ति प्राप्त कर सकता है। यही बुद्ध के धर्म की सब से प्रधान बात है। श्री विधुशेखर भट्टाचार्य ने बँगला भाषा में “बौद्ध धर्मर प्रतिष्ठा" नामक एक बहुत ही गंभीर और विचारपूर्ण लेख लिखा है। इस लेख का अनुवाद "सरस्वती" के मई १९१४ वाले अंक में "बौद्ध-धर्म की प्रतिष्ठा" नाम से निकल चुका है। इस लेख में भट्टाचार्य महाशय ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि बौद्ध धर्म कोई स्वतन्त्र धर्म नहीं है; उसकी उत्पत्ति सनातन वैदिक धर्म से ही है । बौद्ध धर्म के जितने प्रधान प्रधान सिद्धान्त हैं, वे सब किसी न किसी रूप में बुद्ध के पहले भी विद्यमान थे। बुद्ध ने केवल यही किया कि उन सब सिद्धान्तों को सनातन वैदिक धर्म से लेकर और उनमें थोड़ा बहुत परिवर्तन करके एक नये धर्म की स्थापना की। श्रीविधुशेखर महाशय ने अपने सिद्धान्त के पक्ष में जो प्रमाण दिये हैं, वे बहुत सयुक्तिक प्रतीत होते हैं। पाठकों के मनोविनोद के लिये उस लेख का सारांश हम यहाँ पर दिये देते हैं। ___ "जिस समय भारत की धर्म-चिन्ता रूपिणी नदी संहिता रूपी पर्वत से निकलकर आरण्यकोपनिषद् नामक गंभीर कन्दरा में उपस्थित हुई, उस समय उसका प्रवाह और भी प्रबल तथा उसका वेग और भी भीषण हो गया। वह नदी कलकल शब्द Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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