________________
४५
बुद्ध को जीवनी से वे तपश्चर्या के योग्य स्थान ढढने लगे; और वहाँ से थोड़ी दूर पर उरुबिल्व नामक ग्राम में निरंजना नदी के किनारे एक उपयुक्त स्थान पाकर वहीं घोर तपश्चर्या में लीन हो गये । छः वर्षों तक वे तपस्या करते रहे । पर जब उन्होंने देखा कि मामूली तपस्या से कुछ नहीं होता, तब उन्होंने कठोर से कठोर व्रत और उपवास करना प्रारंभ किया । यहाँ तक कि वे दिन में सिर्फ एक दाना चावल का खाकर रहने लगे। इससे वे सूखकर कॉटा हो गये और ऐसे बलहीन हुए कि एक बार थोड़े ही परिश्रम से मूच्छित होकर गिर पड़े।
__मार का आक्रमण और बुद्ध-पद की प्राप्ति ___ जब बुद्ध ने देखा कि व्रत तथा उपवास करने से और शरीर को कष्ट देने से आत्मिक ज्ञान नहीं हो सकता, तब वे पूर्ववत् भोजन करने लगे। इससे पाँच भिक्षु, जो उनके साथ रहते थे, उनको छोड़कर सारनाथ चले गये और वहीं रहने लगे। बुद्ध आत्मिक ज्ञान के लिये बुद्ध गया गये । जब वे "बोधि-वृक्ष" की ओर जा रहे थे, तब रास्ते में, उन्हें स्वस्तिक नाम का एक घसियारा मिला । उसने उन्हें कुछ घास भेंट की । बुद्ध ने घास की वह भेंट स्वीकृत कर ली। फिर वे पीपल के एक वृक्ष के नीचे ( जो बाद में "बोधि-वृक्ष' के नाम से प्रसिद्ध हुआ ) वह घास बिछकर उस पर बैठ गये और ध्यान करने लगे। जब बुद्ध उस बोधि-वृक्ष के नीचे बैठे हुए समाधिस्थ थे और बुद्ध-पद प्राप्त करने को थे, तब "मार" ( कामदेव ) बहुत डरा । बौद्ध धर्म में
"मार" का वही पद है, जो ईसाई धर्म में शैतान का है। उसने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com