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बौद्ध-कालीन भारत जो कुछ ब्राह्मणों के ग्रंथों में लिखा है, वह कदापि माना नहीं जा सकता।
मालूम होता है कि छठी या सातवीं शताब्दी में ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बीच बहुत द्वेष उत्पन्न हो गया था। वे एक दूसरे से आगे बढ़ जाना चाहते थे । इसी कारण बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में, जो ब्राह्मणों के विरुद्ध और क्षत्रियों के पक्ष में थे, ब्राह्मणों का स्थान क्षत्रियों के नीचे रक्खा गया है और उनका उल्लेख अपमान तथा नीचता-सूचक शब्दों में किया गया है। यह भी मालूम होता है कि उस समय क्षत्रिय लोग विद्या, ज्ञान और तप में ब्राह्मणों का मुकाबला करने लगे थे और उनसे आगे निकल जाना चाहते थे। क्षत्रियों की तुलना में ब्राह्मणों की हीनता दिखाने के लिये जैन कल्प-सूत्र में लिखा है कि अर्हत इत्यादि नीच जाति या ब्राह्मण जाति में कभी जन्म ग्रहण नहीं कर सकते । अर्हत , तीर्थकर या बुद्ध का अवतार सदा क्षत्रिय वंश में हुआ है और होगा। ऐसी अवस्था में बौद्ध तथा जैन ग्रंथों को बिलकुल सत्य मान लेना उचित नहीं मालूम होता। ____ इन चारों वर्णो को छोड़कर और बहुत सी ऐसी जातियों का भी पता जातकों से लगता है, जो शूद्रों से भी हीन सममी जाती थीं। इनको "हीन-जातियो" कहते थे। ऐसे लोग बहेलिये, नाई, कुम्हार, जुलाहे, चमार इत्यादि थे। जातकों से पता लगता है कि उस समय अछत जातियाँ भी थीं; और उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था। "चित्त-संभूत जातक" में लिखा है कि जब ब्राह्मण और वैश्य वंश की दो त्रियाँ एक नगर
के फाटक से निकल रही थीं, तब उन्हें रास्ते में दो चांडाल दिखाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com