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________________ ३७५ परिशिष्ट (ग) 'तुम कहाँ से भा रहे हो?' 'काशी से।' 'तुम किसके पुत्र हो ? 'मैं काशी-नरेश का पुत्र हूँ।' 'तुम यहाँ किस लिये आये हो ?' 'विद्याध्ययन करने के लिये।' 'क्या तुम गुरु दक्षिणा लेते आये हो ? अथवा गुरु की सेवा-शुश्रषा करके विद्याध्ययन करना चाहते हो ?' 'दक्षिणा लेता आया हूँ।' इतना कहकर उसने गुरु के चरणों में वे सहस्र मुद्राएँ रख दी, जो उसके पिता ने चलते समय उसे दी थीं।" ___अभी तक इस बात का निश्चय नहीं हुआ कि तक्षशिला का विश्वविद्यालय कब स्थापित हुआ था और किस समय उसका लोप हुआ। परन्तु यह निश्चित है कि ई० पू० छठी शताब्दी से पहली शताब्दी तक यह विश्व विद्यालय भारतवर्ष में विद्या का सब से बड़ा केन्द्र माना जाता था। नालन्द विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय के बाद बौद्ध काल का दूसरा विश्वविद्यालय नालन्द में था। यह स्थान मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह से सात मील उत्तर और पटने से चौंतीस मील दक्षिण है । आजकल इस जगह बड़गाँव नामक ग्राम बसा हुआ है, जो गया जिले में है। यहाँ अभी तक नालन्द की प्राचीन इमारतों के खंडहर पाये जाते हैं। इस विश्वविद्यालय * सरस्वती, जनवरी १६.०६ और माधुरी पौष १६७६ में तक्षशिला विश्वविद्यालय के बारे में लेख निकल चुके हैं । उन्हीं दोनों लेखों के आधार पर तक्षशिला विश्वविद्यालय का यह वर्णन लिखा गया है। + कनिंघम कृत एन्शिएन्ट जिओग्राफी; पृ० ४६८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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