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________________ जौर-कालोन भारत ३५२ तीर्थ थी। इसके समीप लाल पत्थर की कई खानें हैं, जिस कारण प्राचीन काल में यह नगरी मूर्ति-निर्माण कला का एक केन्द्र बन गई थी। यहाँ के मूर्तिकार समस्त उत्तरी भारत में प्रसिद्ध थे। जिस तरह आजकल उत्तरी भारत में जयपुर की मूर्तियों का प्रचार है, उसी तरह प्राचीन समय में मथुरा की बनी हुई मूर्तियों का प्रचार था । यहाँ की मूर्तिकारी इतनी प्रसिद्ध थी कि उत्तरी भारत के धनी मनुष्य अपने इष्ट-देवताओं की बड़ी बड़ीमूर्तियाँ यहाँ से बनवाकर सैकड़ों मील दूर अपने अपने स्थान पर ले जाते थे। उदाहरण के लिये मथुरा की बनी हुई बहुत बड़ी बड़ी कई मूर्तियाँ चार सौ मील दूर सारनाथ में मिलती हैं। केवल कुषण काल में ही नहीं, बल्कि बादाको गुप्त काल में भी मथुरा की मूर्ति-निर्माण कला वैसी ही उन्नत अवस्था में थी। कुषण वंशी राजाओं का राज्य गंधार में भी था और मथुरा में भी। यही कारण है कि मथुरा की मूर्तिकारी पर गान्धार मूर्तिकारी का कुछ प्रभाव मालूम होता है । संभव है, उस समय गन्धार प्रान्त के कुछ मूर्ति-कार मथुरा में आये हों ओर अपना प्रभाव वहाँ की मूर्ति-निर्माण शैली पर छोड़ गये हों। मथुरा में कुछ मूर्तियाँ ऐसी भी मिली हैं, जिनके वस्त्र, भाव तथा प्राकृति बिलकुल यूनानियों की सी है। सारनाथ-मथुरा के समान सारनाथ भी कुषण काल में बौद्ध और जैन धर्म का केन्द्र था। सारनाथ में इन दोनों धर्मों के अनेक मन्दिर और मठ थे, जिन्हें बारहवीं शताब्दी के अन्त में कट्टर मुसल्मानों ने तोड़कर मिट्टी में मिला दिया। हिन्दू धर्म के केन्द्र बनारस के प्राचीन मन्दिरों और मूर्तियों का भी यही हाल हुआ। सारनाथ के मूर्तिकार साधारण तौर पर चुनार के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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