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छठा अध्याय
साहित्यिक दशा साहित्यिक भाषा-जैसा कि पहले लिखा जा चुका है, प्राचीन से प्राचीन शिलालेख, जो अब तक मिले हैं, अशोक के समय के हैं। ये शिलालेख अपने समय की आम बोल चाल की भाषा में थे। पर ज्यों ज्यों ब्राह्मणों का प्रभाव बढ़ने लगा, त्यों त्यों शिलालेखों की भाषा में संस्कृत की मिलावट होने लगी। यहाँ तक कि कुषण-वंशी राजाओं के शासन काल के शिलालेख प्राकृत मिली हुई संस्कृत भाषा में और गुप्त काल के लेख शुद्ध संस्कृत भाषा में मिलते हैं। अर्थात् धीरे धीरे शिलालेखों में प्राकृत का स्थान संस्कृत ले रही थी। कुषण-वंशी राजाओं के शासन काल में संस्कृत का प्रचार खूब हो गया था; और उस काल में बौद्ध धर्म के जितने ग्रन्थ रचे गये, वे सब संस्कृत भाषा में हैं। अब तक शुद्ध संस्कृत का जो सब से पहला शिलालेख मिला है, वह कुषण राजा वासिष्क के समय का है। इसके बाद शुद्ध संस्कृत का दूसरा शिलालेख सन् १५० ई० के लगभग का है। वह क्षत्रप रुद्रदामन के समय का है और गिरनार की एक पर्वत-शिला पर खुदा हुआ है। इससे सिद्ध होता है कि उस समय अर्थात् ईसवी सन् के कुछ समय आगे-पीछे संस्कृत का अच्छा प्रचार था। उस समय के प्राकृत या प्राकृत-मिश्रित संस्कृत के जो शिला-लेख मिले है, इसका कारण यह मालूम होता है कि
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