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बौख-कालीन भारत
३२६ उपदेश अधिकतर शुद्ध रूप में हैं; पर महायान संप्रदाय में वे परिवर्तित रूप में हैं; अर्थात् उनमें भक्ति मार्ग की प्रबलता दिखाई देती है।
(३) हीनयान संप्रदाय का अधिक प्रचार दक्षिण में और विशेषतः लंका तथा बरमा में था; पर महायान संप्रदाय का प्रचार प्रायः उत्तर के देशों में और नेपाल तथा चीन में था।
(४) हीनयान संप्रदाय में गौतम बुद्ध देवता के रूप में नहीं पूजे जाते थे; इसलिये अति प्राचीन बौद्ध काल में उनकी मूर्तियाँ नहीं बनाई जाती थीं। पर महायान संप्रदाय में बुद्ध देवता के रूप में पूजे जाने लगे; इसलिये कुषणों के राज्य-काल में उनकी मूर्तियाँ बनने लगीं।
(५) हीनयान संप्रदाय एक तरह का संन्यास या ज्ञानमार्ग था; पर महायान संप्रदाय एक तरह का भक्ति-मार्ग था; अर्थात् हीनयान संप्रदाय ने संन्यास या ज्ञान पर और महायान संप्रदान ने भक्ति या कर्म पर अधिक जोर दिया था।
(६) हीनयान के अनुसार केवल उसी को निर्वाण मिल सकता है, जिसने संसार से सब तरह का नाता तोड़कर भिक्षु का जीवन ग्रहण किया हो;.पर महायान के अनुसार उन सब को . निर्वाण प्राप्त हो सकता है, जिन्होंने श्रद्धा और भक्ति के मार्ग का अनुसरण किया हो और जो संसार से भी नाता जोड़े हुए हों।
ब्राह्मण धर्म की स्थिति ब्राह्मण धर्म नष्ट नहीं हुमा-अशोक के समय से कनिष्क के समय तक अर्थात् ई० पू० २०० से ई०प० २०० तक उत्तरी भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार बहुत ज़ोरों के साथ था। इन चार
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