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________________ बौख-कालीन भारत ३२२२ महायान और भक्ति-मार्ग-बुद्ध के मूल उपदेशों में आत्मा. या ब्रह्म का अस्तित्व नहीं माना गया था । अतएव स्वयं बुद्ध की उपस्थिति में भक्ति के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति करने का उपदेशः नहीं किया जा सकता था । जब तक बुद्ध भगवान् की भव्य मूर्ति और उनका पावन चरित्र लोगों के सामने प्रत्यक्ष रीति से उपस्थित था, तब तक भक्ति मार्ग के उपदेश की कोई आवश्यकता ही न थी। पर बुद्ध के बाद जब भिक्षु लोग सामान्य जनों में इसका प्रचार करने लगे, तब उन्होंने देखा कि सब लोग गृहस्थी छोड़कर भिक्षु नहीं बन सकते; और न उनकी समझ में शुष्कः तथा निरीश्वर संन्यास-मार्ग ही आ सकता है । इसलिये एक ऐसे सरल और प्रत्यक्ष मार्ग की आवश्यकता हुई, जो सब के हृदयों को आकर्षित कर सके। यह मार्ग सिवा भक्ति-मार्ग के और क्या हो सकता था ! इस मार्ग के अनुसार स्वयं बुद्ध भगवान् ही परमात्मा समझे जाने लगे। बुद्ध के साथ ही साथ बहुत से बोधिसत्वों की भी कल्पना की गई। बोधिसत्व वे हैं, जो भविष्य जन्म में बुद्ध पद के अधिकारी हो सकते हैं। अर्थात् बुद्ध होने से पहले अनेक बार बोधिसत्व रूप में जन्म लेना पड़ता है । नये: महायान संप्रदाय में बुद्ध और बोधिसत्वों की पूजा होने लगी। बौद्ध पण्डितों ने बुद्ध ही को स्वयंभू तथा अनादि अनन्त परमेश्वर का रूप दे दिया। वे कहने लगे कि बुद्ध का निर्वाण तो उन्हीं की लीला है; वास्तव में बुद्ध का कभी नाश नहीं होता; वे. सदैव अमर रहते हैं। इसी प्रकार बौद्ध ग्रन्थों में यह प्रतिपादन किया जाने लगा कि “बुद्ध भगवान् समस्त संसार के पिता और नर-नारी उनकी सन्तान हैं; वे सब को समान रष्टि से देखते हैं, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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