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________________ चौर-कालीन भारत ३१६ में भी आया है। कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी "वृष्णि संघ"* का उल्लेख है; पर वहाँ कौटिल्य का तात्पर्य उन प्राचीन वृष्णियों से है, जिनके वंश में श्रीकृष्ण भगवान हुए थे। वृष्णियों का राज्य काल ई० पू० प्रथम या द्वितीय शताब्दी माना जाता है। शिबि-चित्तौर से ११ मील उत्तर "तम्बावति नागरि" नामक एक प्राचीन नगर का ध्वंसावशेष है। इस नगर के पास कुछ बहुत ही प्राचीन सिके पाये गये हैं। उनमें से कुछ सिके “शिबि" लोगों के हैं। उन सिक्कों पर यह लेख खुदा हुआ है-"मझमिकाय सिबिजनपदस" अर्थात् “मध्यमिका के सिवि जानपदों का"। जानपद का अर्थ गण या जनसमूह भी है । सिक्कों से पता चलता है कि शिबि लोग "मध्यमिका" के थे। पतंजलि के महाभाष्य में मध्यमिका नगरी का उल्लेख है। "तम्बावति नागरि" ही कदाचित् प्राचीन "मध्यमिका" है । “शिबि” लोगों के सब से. प्राचीन सिक्के ई० पू० प्रथम या द्वितीय शताब्दी के हैं । ऊपर जिन गण राज्यों का उल्लेख किया गया है, वे अपने समय में बड़े शक्ति-सम्पन्न थे। उस समय के राजनीतिक समाज में उनकी बड़ी धाक थी। देश का बहुत सा भाग उनके शासन में था । यौधेय लोगों ने अपनी प्रबल राजनीतिक शक्ति के कारण बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी। वे पंजाब के एक बहुत बड़े हिस्से पर राज्य करते थे। इसी तरह मालव गण का भी बड़ा महत्त्व * अर्थशास्त्र; पृ० १२. + Rapson's Indian Coins. p. 12; Archaeological Survey Report, VI. pp. 200-207. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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