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दूसरा अध्याय
प्रजातन्त्र या गण राज्य हम पहले खण्ड के आठवें अध्याय में कह आये हैं कि प्राचीन बौद्ध काल के प्रजातन्त्र राज्य, चाणक्य की कुटिल नीति से, धीरे धीरे मौर्य साम्राज्य में मिला लिये गये और उनका स्वाधीन अस्तित्व सदा के लिये नष्ट हो गया। पर जिस सहयोग के भाव की बदौलत इन सब प्रजातन्त्र राज्यों का प्रादुर्भाव हुआ था, वह उत्तरी भारत की स्वाधीनता-प्रेमी जातियों में इतना बद्ध-मूल था कि किसी सम्राट् या मन्त्री की कुटिल नीति से लुप्त न हो सकता था। अतएव मौर्य साम्राज्य का पतन होते ही नये नये प्रजातन्त्र राज्य सिर उठाने लगे। सिक्कों से पता लगता है कि मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद एक ही शताब्दी के अन्दर यौधेय, मालव, वृष्णि, आर्जुनायन, औदुम्बर, कुणिन्द, शिबि आदि कई प्रजातन्त्र राज्यों का प्रादुर्भाव हो गया। सिक्कों और शिलालेखों के आधार पर इन प्रजातंत्र राज्यों का विवरण यहाँ दिया जाता है । पर यह कह देना उचित जान पड़ता है कि प्राचीन प्रजातन्त्र राज्यों के लिये कौटिलीय अर्थशास्त्र तथा बौद्ध ग्रन्थों में "संघ" शब्द आया है। पर जब बुद्ध भगवान् ने अपने भिक्षुओं के समुदाय का नाम "संघ" रक्खा, तब इस शब्द का राजनीतिक अर्थ जाता रहा । बाद को प्रजातन्त्र राज्यों के लिये संघ के बदले गण शब्द का व्यवहार होने लगा; और इसी लिये सिक्कों में
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