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बौख-कालीन भारत परिवेष्टन है, उसका घेरा पूरब से पच्छिम को १४४ फुट और उत्तर से दक्खिन को १५१ फुट है। यह परिवेष्टन गोलाकार है। इसके ८ फुट ऊँचे अठपहल खम्भे एक दूसरे से दो दो फुट की दूरी पर हैं । वे सिरे पर तथा बीच में भी मोटे मोटे पत्थरों से जुड़े हुए हैं। इन खंभों और पत्थरों पर बेल बूटों का इतना ज्यादा काम है कि उन बेल बूटों से वे बिलकुल ढक से गये हैं। साँची का यह स्तूप संभवतः अशोक के समय में बना था। उसके परिवेष्टन के प्रत्येक भाग पर जो लेख खुदे हैं, उनसे विदित होता है कि वे भिन्न भिन्न मनुष्यों के बनवाये हुए हैं। स्तूप का परिवेष्टन तथा उसके चारों फाटक या तोरण अशोक के बाद के हैं। उनका समय ई० पू० दूसरी शताब्दी माना जाता है । चारो तोरणों पर संगतराशी का बहुत उत्तम काम है। उन पर बुद्ध के जीवन की प्रधान प्रधान घटनाएँ खुदी हैं। इसके सिवा उन पर जातकों के दृश्य भी खुदे हैं। कहीं भक्तों का जलूस निकल रहा है, कहीं स्तूप की पूजा हो रही है, कहीं युद्ध हो रहा है और कहीं स्त्रियाँ तथा पुरुष खाते पीते और आनन्द करते हैं।
कृष्ण नदी के मुहाने के निकट उसके दक्षिणी किनारे पर अमरावती है। यहाँ बहुत दिनों तक दक्षिणी भारत के आन्ध्र राजाओं की राजधानी थी। यहाँ का स्तूप अब नहीं है। पर ह्वेन्-त्सांग जब यहाँ आया था, तब यह विद्यमान था। इस स्तूप के चारो ओर भी एक परिवेष्टन या घेरा था। उस परिवेष्टन पर भी बहुत उत्तम कारीगरी का काम है । उस पर भी बुद्ध के जीवन की घटनाएँ और जातक कथाओं के दृश्य खुदे हैं ।
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