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सांपतिक अवस्था
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से सूचित होता है कि उस समय इन श्रेणियों का महत्व बहुत बढ़ा हुआ था। इन श्रेणियों के मुखियों को प्रायः राज्य में ऊँचा पद मिलता था और राजा तथा धनी लोग उनकी बड़ी प्रतिष्ठा करते थे। श्रेणी का अपने सदस्यों पर कितना अधिकार था, यह इसी बात से सूचित होता है कि वह उन व्यक्तियों के घरेलू या पति-पत्नी के झगड़ों का भी निबटारा करती थी। कोई मनुष्य अपनी श्रेणी या पंचायत के विरुद्ध न जा सकता था। ___कौटिलीय अर्थशास्त्र से श्रेणियों के बारे में बहुत सी बातें विदित होती हैं । अर्थशास्त्र ( अधि० २, प्रक० २५) में लिखा है कि गणनाध्यक्ष (आय व्यय का लेखा रखनेवाले) को चाहिए कि वह "संघात" या श्रेणी के रीति रिवाज,व्यवहार और उनके संबंध की हर एक बात अपनी बही में दर्ज करे।
श्रेणी के आपस के मुकदमों में राज्य की ओर से खास रियत की जाती थी (अधि० ३, प्रक० ५७) । उन व्यारियों के साथ भी खास रियायत की जाती थी, जो किसी श्रेणी के सभासद होते थे। जब कोई नया नगर बसाया जाता था, तब उसमें श्रेणियों के लिये एक अलग स्थान दिया जाता था। इससे पता लगता है कि उस समय श्रेणियों का कितना महत्त्व था (अधि०२, प्रक० २२)। राज्य की ओर से यह नियम था कि किसी गाँव में उस ग्राम की श्रेणी के सिवा और कोई बाहरी श्रेणी आकर व्यापार न कर सकती थी ( अधि० २, प्रक० १९)। कौटिलीय अर्थशास्त्र (अधि० ९, प्रक० १३८) में श्रेणी-बल का भी उल्लेख है। जो सेना श्रेणियों में से भर्ती की जाती थी, वह "श्रेणी-बल" कहलाती थी । काम्भोज और सुराष्ट्र के कुछ क्षत्रियों की श्रेणियाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com