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बौर कालीन भारत
२१४ ब्राह्मण "ब्रह्मबंधु" (नीच ब्राह्मण) कहे गये हैं । वे यज्ञ कराते थे, पुरोहिती करते थे, राजा को शकुन आदि बताते थे, और मन्त्र के द्वारा भूतों तथा पिशाचों को वश में करते थे। जातकों में ब्राह्मण खेती करते, हल चलाते और पशु-पालन करते हुए दिखाये गये हैं । ऐसे ब्राह्मण "कस्सक-ब्राह्मण" (कर्षक-ब्राह्मण) कहे गये हैं । ब्राह्मण व्यापार करते हुए भी लिखे गये हैं। “महासुतसोम जातक" में लिखा है कि एक ब्राह्मण व्यापारी ५०० छकड़ों पर माल लादकर व्यापार करने के लिये पूरब से पच्छिम को जाता था । "गग्ग जातक" से पता लगता है कि ब्राह्मण व्यापारी इधर उधर घूम फिरकर माल बेचतेथे। "फनन्द जातक" में एक ब्राह्मण वढ़ई (ब्राह्मण वडकि) का नाम आया है, जो शहर के बाहर बढ़इयों के ग्राम (वडकी गाम) में रहता और छकड़े बनाता था । ___ वैश्य-जातकों से पता लगता है कि उन दिनों वैश्यों की कोई अलग जाति न थी। जो लोग खेती और व्यापार करते थे, वही वैश्य कहे जाते थे। जातकों में उनके लिये अधिकतर “गृहपति" (गृहपति) और "कुटुम्बिक" शब्द आये हैं। उन्हें अपने कुल का बड़ा अभिमान रहता था; इसी लिये वे अपने को "कुल-पुत्त" कहते थे। वे प्रायः अपने बराबर के कुल में ही विवाह सम्बन्ध करते थे । राजाओं के दरबार में गृहपतियों का उनके धन और पद के कारण बड़ा सम्मान होता था। गृहपतियों का प्रतिनिधि "सेट्ठि" (श्रेष्ठिन् ) कहलाता था । ब्राह्मण और क्षत्रिय बालकों की तरह वैश्य बालक भी विद्याध्ययन के लिये गुरु के यहाँ जाते थे। उन्हें भी तीनों वेदों की शिक्षा दी जाती थी। “निग्रोध जातक" से पता लगता है कि राजगृह के एक सेट्टि (सेठ) ने अपने दो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com