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मौर्य शासन पनि बड़ा भारी तूफान आने के कारण वे दोनों नष्ट हो गये। तब शक क्षत्रप रुद्रदामन ने फिर से बाँध बनवाया; और उस बाँध तथा मोल का संक्षिप्त इतिहास एक शिलालेख में लिख दिया, जो गिरनार की चट्टान पर खुदा हुआ है* । रुद्रदामन का बनवाया हुश्रा बाँध भी समय के प्रवाह में पड़कर टूट गया; और एक बार फिर सन् ४५८ ई० में स्कन्दगुप्त के स्थानीय अधिकारी की देख रेख में बनवाया गया। इसके बाद झील और बाँध कब नष्ट हुए, इसका पता इतिहास से नहीं लगता। पर रुद्रदामन के उक्त शिलालेख से इतना अवश्य सिद्ध होता है कि मौर्य सम्राट सिंचाई के लिये नहरों आदि का प्रबन्ध करना अपना परम कर्त्तव्य सममते थे और साम्राज्य के दूरस्थित प्रान्तों की सिंचाई पर भी पूरा ध्यान रखते थे।
चाणक्य के लेख से यह भी ज्ञात होता है कि कृषि विभाग के साथ साथ “अन्तरिक्ष-विद्या विभाग" (Meteorological Department) भी था। यह विभाग एक प्रकार के यन्त्र (वर्षमान कुण्ड ) के द्वारा इस बात का निश्चय करता था कि कितना पानी बरस चुका है। बादलों की रंगत से भी इस बात का पता लगाया जाता था कि पानी बरसेगा या नहीं, और बरसेगा तो कितना। सूर्य, शुक्र और बृहस्पति की स्थिति और चाल से भी यह निश्चय किया जाता था कि कितना पानी बरसेगा ।
व्यापार और वाणिज्य विभाग-मौर्य साम्राज्य में व्यापार
* Epigraphia Indica; Vol. VIII. p. 36. + कौटिलीय अर्थशास्त्र; अधि० २, अध्या० ५ तथा २४.
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