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बौर-कालीन भारत
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और इसी तरह के दूसरे गणों का था। ये लोग अपने नाम के पहले "राजा" शब्द लगाते थे। ऊपर बौद्ध ग्रंथों के आधार पर लिखा जा चुका है कि बुद्ध के समय में “लिच्छवि" और "मल्ल"
आदि ग्यारह प्रजातन्त्र या गण-राज्य थे। यह भी लिखा जा चुका है कि लिच्छवियों की महासभा के सभासदों की संख्या ७७०७ थी और वे सब "राजा" कहलाते थे। कौटिलीय अर्थशास्र ( अधि० ११, अध्या० १) से पता लगता है कि ये सब गण-राज्य एक प्रकार के प्रजातन्त्र राज्य थे। इनके शासन का कार्य इनके मुखियों के हाथ में रहता था, जो सब लोगों की ओर से चुनकर नियुक्त किये जाते थे।
अर्थशास्त्र में प्रजा-तन्त्र राज्यों की जो सूची दी है, उससे पता लगता है कि मौर्य काल के प्रारंभ में प्रायः समस्त उत्तरी भारत इन प्रजातन्त्र राज्यों के अधिकार में था। “लिच्छवि', "वृजि" और "मल्ल" पूरब की ओर, "कुरु" और "पांचाल" मध्य में, “मद्र" उत्तर-पश्चिम की ओर और “कुकुर" दक्षिणपश्चिम की ओर थे। ये गण-राज्य बड़े शक्ति-शाली थे, इस बात का पता कौटिलीय अर्थशास्त्र से लगता है; क्योंकि उसमें लिखा है-"संघलाभो दंडमित्रलाभानामुत्तमः” अर्थात् सेना-बल और मित्र-बल की अपेक्षा संघ-बल अथवा गण-राज्य की सहायता का लाभ अधिक श्रेयस्कर है *।
प्रजातन्त्र राज्यों की विशेषताएँ-बौद्ध ग्रंथों, यूनानी
• भौटिलीय अर्थशास्त्र (११ अधि० १ अध्या० ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com