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बौद्ध-कालीन भारत
१३२ अहिंसा का प्रचार--ज्यों ज्यों समय बीतता गया, त्यों त्यों अशोक के हृदय में अहिंसा का भाव जड़ पकड़ता गया। अंत में , ई० पू० २४३ में उसने जीव-रक्षा के संबंध में बड़े कड़े नियम बनाये । यदि किसी जाति या वर्ण का कोई मनुष्य इन नियमों को तोड़ता था, तो उसे बड़ा कड़ा दण्ड दिया जाता था। कुल साम्राज्य में इन नियमों का प्रचार था । इन नियमों के अनुसार कई प्रकार के प्राणियों का वध बिलकुल ही बंद कर दिया गया था । जिन पशुओं का मांस खाने के काम में आता था, उनका वध यद्यपि बिलकुल तो नहीं बन्द किया गया, तथापि उनके वध के संबंध में बहुत कड़े नियम बना दिये गये, जिससे प्राणियों का अंधाधुंध वध होना रुक गया । साल में छप्पन दिन तो पशुवध बिलकुल ही मना था। अशोक के पंचम स्तंभलेख में ये सब नियम स्पष्ट रूप से दिये गये हैं। उस के "धम्म” (धर्म) का प्रथम सिद्धांत अहिंसा ही था।
बड़ों का सम्मान और छोटों पर दया-"धम्म" का दूसरा सिद्धांत, जिस पर अशोक ने अपने शिलालेख में बहुत जोर दिया है, यह है कि माता-पिता, गुरु और बड़े-बूढ़ों का उचित आदर करना बहुत आवश्यक है। उसने इस बात पर भी जोर दिया है कि बड़ों को अपने छोटों, सेवकों, भृत्यों तथा अन्य प्राणियों के साथ दया का व्यवहार करना चाहिए ।
सत्य भाषण-अशोक के "धम्म” के अनुसार मनुष्य का तीसरा प्रधान कर्तव्य यह है कि वह सदा सत्य भाषण करे । इस ‘पर भी उसके लेखों में जोर दिया गया है। अहिंसा, बड़ों
का आदर और सत्य-भाषण ये तीनों सिद्धांत, जो "धम्म" के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com