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________________ बौद्ध-कालीन भारत ११० बनाकर सिन्धु नदी को पार किया। फिर उसने तक्षशिला में प्रवेश किया। तक्षशिला के राजा आंभि अथवा आंफिस ने सिकन्दर की शरण में आकर उससे पहले ही सन्धि कर ली थी। वह तन, मन, धन से सिकन्दर की सहायता करने को उद्यत हो गया। तक्षशिला के राजा की इस कायरता का कारण यह था कि उस समय अभिसार नाम के पड़ोसी राज्य से तथा एक और बड़े राज्य से, जिसका राजा पोरस ( पौरव अथवा पुरुवर्ष) था, उस की परम शत्रुता थी। इन्हीं दोनों राज्यों के विरुद्ध वह सिकन्दर की सहायता चाहता था और उसकी मदद से उन दोनों को कुचल डालने की इच्छा रखता था। तक्षशिला नगर में आकर सिकन्दर ने पोरस के पास यह सन्देश भेजवाया कि आत्मसमर्पण करके हमारा आधिपत्य स्वीकृत करो; नहीं तो तुम पर चढ़ाई की जायगी। __पोरस के साथ युद्ध-पोरस झेलम और चनाब नदियों के बीचवाले प्रदेश का राजा था । पोरस ने सिकन्दर के पास उसके दूत के द्वारा बहुत ही उद्धत तथा अवज्ञापूर्ण उत्तर भेजवाया, जिससे चिढ़कर सिकन्दर ने सेना को उसके ऊपर चढ़ाई करने की आज्ञा दी। पोरस भी अपनी पूरी शक्ति के साथ सिकन्दर का मुकाबला करने के लिये तैयार बैठा था। भेलम नदी के किनारे दोनों का मुकाबला हुआ, जिसमें कई कारणों से सिकन्दर की जीत हुई। पोरस बहुत घायल हुआ और कैद कर लिया गया। सिकन्दर ने भारतवर्ष में जितनी लड़ाइयाँ लड़ीं, उनमें यह लड़ाई सब से अधिक प्रसिद्ध और गहरी थी। जब पोरस सिकन्दर के सामने लाया गया, तब उस के हृष्ट पुष्ट शरीर तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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