SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध-कालीन भारत नियमों में से कोई नियम तोड़ता था, तो उसे केवल दण्ड दिया जाता था । उपाध्याय की आज्ञा से कोई एक भिक्षु उसे दण्ड दे सकता था। भिक्षुणियों का भी प्रव्रज्या और उपसंपदा संस्कार उसी तरह होता था, जिस तरह भिक्षुओं का होता था। __ संघ का भीतरी जीवन-उपसम्पदा संस्कार के बाद नये भिक्षु को संघ के सब नियम बता दिये जाते थे। संघ में उसे किस तरह का जीवन बिताना पड़ेगा, यह भी उसे बताया जाता था । भिक्षुओं को संघ में रहकर कैसा पवित्र जीवन बिताना पड़ता था, यह उसके निम्नलिखित नियमों से प्रकट होगा। (१) जिस भिक्षु को उपसम्पदा संस्कार मिल गया हो, उसे हर एक प्रकार के व्यभिचार से बचना चाहिए । (२) उसे किसी दूसरे का एक तिनका भी बिना पूछे न लेना चाहिए और न कोई चीज चुरानी चाहिए। (३) उसे कोई जीव न मारना चाहिए; यहाँ तक कि एक च्यूटी की भी हत्या न करनी चाहिए। (४) उसे किसी देवी या मानुषी शक्ति का दावा न करना चाहिए। __संघ के नियमों के अनुसार अपना जीवन बिताने के लिये विशेष प्रकार की शिक्षा भी आवश्यक थी। इसलिये यह नियम था कि नया भिक्षु पहले दस वर्षों तक अपने उपाध्याय या आचार्य के बिलकुल अधीन रहे । दोनों में कैसा सम्बन्ध रहना आवश्यक होता था, यह विनयपिटक के "महावग्ग" में बहुत विस्तार के साथ दिया है। दोनों के पारस्परिक संबंध के विषय में गौतम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy