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तथापि आज इसे प्रकाशित करके मैं अपने आपको सफल-मनोरथ समझता हूँ। अब इसका आदर करना या न करना हिन्दी-संसार के हाथ है।
एक बात और है। यह ग्रंथ सन् १९२२ में लिखा गया था; और तब से अब तक इतिहास तथा पुरातत्त्व के क्षेत्रों में अनेक नई नई बातों का पता लगा है और बहुत सी नई नई खोजें हुई हैं। मैं अपने अल्प ज्ञान के अनुसार इसमें थोड़ा बहुत परिवर्तन और परिवर्द्धन करना चाहता था (और कहीं कहीं मैंने ऐसा किया भी है); पर अनेक कारणों से मेरी वह इच्छा सर्वाश में पूरी नहीं हो सकी, इसका मुझे दुःख है। उदाहरणार्थ पाटलिपुत्र की कुम्हराड़ (पटना) वाली खुदाई से जो अनेक नई बातें मालम हुई हैं, उनका इसमें समावेश नहीं हो सका है। मालव सिक्कों पर जो "मपोजय” "मगज” “मजव" "मजुप” आदि कई निरर्थक जान पड़नेवाले शब्द मिलते हैं, उनके संबंध में श्रीयुक्त काशीप्रसादजी जायसवाल की उस आनुमानिक व्याख्या का भी इसमें उल्लेख हो जाना चाहिए था, जो उन्होंने अपने नव-प्रकाशित Hindu Polity नामक ग्रंथ के पहले खंड के परिशिष्ट में की है। परन्तु इस प्रकार की त्रुटियों का उत्तरदायी मैं हो सकता हूँ, इसके सुयोग्य लेखक महोदय नहीं। हाँ, यदि कभी सौभाग्यवश इस ग्रंथ के दूसरे संस्करण की नौबत आईजिसके लिये कि मैं निराश नहीं हूँ-तो इन अभावों की पूर्ति अवश्य ही कर दी जायगी। आशा है, हिन्दी-प्रेमियों में इस प्रथ का समुचित आदर होगा।
निवेदक फाल्गुन शुक्ल ११ संवत् १९८२. )
रामचंद्र वर्मा।
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