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________________ ( घ ) का अड्डा सर्वत्र जम जाता है। धर्मस्थान और तीर्थस्थानों की पवित्रता तो रहती ही नहीं। ऐसे दूषित व्यक्ति धर्मके नाम पर घुमक्कड़ होते हैं और दूसरों के कन्धे पर जीते हैं। इसलिये समाज के ऊपर निरर्थक बोझा भी बढ़ता है। यह हुई समाजिक सां।' बालदीक्षा का मुख्य उद्देश्य था काम वासना से मुक्ति पाकर आत्म शुद्धि पूर्वक लोकसेवा करना, पर जब कि बालदीक्षा की प्रतिष्ठा बढ़ी और उसमें जीवन-यापन करना सरल हुआ तब सामाजिक और आध्यात्मिक जबाबदेही से सर्वथा शुन्य ऐसे लोगोंको धर्म मार्गमें भरती होने लगी। फलतः अपनी आजीविका और प्रतिष्ठा के लिये वे नाना बहमों की पुष्टि के द्वारा निभने लगे जिससे मानवता और सामाजिकता के उत्थान में बड़ा भारी अन्तराय पड़ता है। और हजार प्रयत्न करनेपर भी शिक्षा का अपेक्षित फल नहीं आता। उक्त कारणोंसे मैं इस निश्चित परिणाम पर पहुंचा हूं कि जब धर्मगुरु और समाजके अगुए स्वयं बालदीक्षा का आत्यन्तिक नियमन नहीं करते तब यह काम सुराज्य के तन्त्रको ही अपने हाथ में लेना चाहिये। धर्मके विकार दूर करना यह भी राजधर्म है । इसलिये बीकानेर जैसे प्रगति शील गज्य के लिये बड़ौदा राज्य की तरह उचित है कि वह श्रीयुत चम्पालालजी बांठिया के प्रस्तुत बिल को कानून का रूप अवश्य दे और इस तरह धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए दूसरे राज्यों के वास्ते एक विचारपूत उदाहरण पेश करे। पं० सुखलालजी. १३ फर्वरी १९४४. भूतपूर्व जैववायापक हिन्द विविधाम, बनारस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034760
Book TitleBaldiksha Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndrachandra Shastri
PublisherChampalal Banthiya
Publication Year1944
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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