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( ५८ ) कई जगह यहाँ तक देखा गया है कि एक पिताके कई लड़कियाँ हैं। अपने ऐश आरामके लिए उसे जब रुपये की जरूरत होतो है, एक लड़की किमी बूढ़ेके हाथ बेच देता है। इसी प्रकार लड़कियोंको उसने आमदनीका जरिया बना रखा है। ऐसे पिता यदि साधुओं द्वारा कुछ लेकर अपने बालकोंको बेच दें तो इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है।
(३) कई वार ऐसा भी होता है कि एक पिताके कई लड़कियाँ हैं और सबका विवाह करना कठिन है तो वह उन्हें दीक्षा दिला देता है।
इस प्रकारके पिताके हाथमें बालकका भविष्य कभी सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।
(४) जब माता पिता भी इस प्रकार बालकके हितोंका नाश करते हुए दिखाई देते हैं तो दूमरे संरक्षकोंका कहना ही क्या है ! बड़ा भाई अपनी बहिनोंको रुपये लेकर या उनकी शादीसे तंग आकर दीक्षा दिलानेके लिए तैयार हो जाता है। छोटे भाईको भी रुपये लेकर या संपचिमें बँटवारेसे दूर करनेके लिए दीक्षा दिला देता है।
ऐमी दशामें बालक अपने हितकी स्वयं ही रक्षा कर सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि जब तक उसकी अवस्था परिपक्क न हो, उसे किसी बन्धनमें न डाला जाय। समझदार होनेपर वह अपनी इच्छानुसार कर सकता है। . ..:...
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