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________________ गमविहारियोंके लिये यह नियम नहीं है कि वे परम्पराका पालन करें। परिस्थिति देखकर वे जैसा उचित समझें, वैसा कर सकते हैं। उपरोक्त दोनों दीक्षाएं देनेवाले आगमविहारी थे । उनका उदाहरण आजकलके समयमें उपस्थित नहीं किया जा सकता। (ग) यह बात ठीक है कि धार्मिक संस्कार बचपनमें डाले जा सकते हैं किन्तु ऐसे संस्कार डालनेके लिये साधु बनना आवश्यक नहीं है। गृहस्थ रहकर भी ब्रह्मचर्य आदिका पालन किया जा सकता है और वासनाओंतथा अन्य दोषोंसे दूर रहा जा सकता है। साधु अवस्था धार्मिक संस्कारोंका प्रारम्भ करनेके लिये नहीं होती। संस्कार पुष्ट होने पर धमकी उच्चतम आराधनाके लिये मुनिव्रत लिया जाता है। इसके लिये तो यही ठीक होता है कि बालककी भावनाओंको घोरे-धीरे पुष्ट होने दिया जाय और अवस्था परिपक्क होने पर वह चाहे तो संन्यास ( दीक्षा) अंगीकार कर ले। (घ) यह बात ठीक है कि जैन शास्त्रोंमें बाल शब्दसे आठ वर्ष तकका ही अर्थ लिया गया है किन्तु उन्हीं में तथा दूसरे प्रन्थों में भी सोलह वर्ष तक बालक कहा गया है। स्थानांग सूत्रकी वृत्तिमें अभयदेव सूरिने लिखा है "माषोडशाद भवेद् बालः" इसी प्रकार आचारांग सूत्रकी टीकामें भी पाया हैभाषोडशाब्वेद्वालो, यावत्क्षीरामयाचकः । मा० १ ० २ ० १३० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034760
Book TitleBaldiksha Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndrachandra Shastri
PublisherChampalal Banthiya
Publication Year1944
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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