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___इस प्रस्तावको रखते समय मेरे हृदयमें किसी प्रकारका साम्प्रदायिक या वैयक्तिक द्वेष नहीं है। जिस सम्प्रदायका मैं स्वयं अनुयायी हूँ, उसमें भी बहुत साधु छोटे-छोटे बालकोंको मूंड लेते हैं। इतर सम्प्रदायोंके साथ-साथ मुझे अपनी सम्प्रदायका भो कोप-भाजन बनना पड़ेगा, इसका मुझे पूरा खयाल है।
___ साधुसंस्थाको बदनाम करना या साधुओंकी संख्या कम करना भी इसका लक्ष्य नहीं है। किन्तु मैं यह अवश्य चाहता हूँ कि हमारे साधु सच्चे साधु बनें। योग्य और अयोग्य सभी तरहके व्यक्तियोंको साधु बना लेनेसे साधुसंस्थाका सम्मान घटता है। यदि साधुसंस्थाकी पवित्रताके लिए संख्या कुछ घट भी जाय तो इसकी चिन्ता न करनी चाहिए।
इस प्रस्तावके रखने में मेरे तीन उद्देश्य हैं
१-बालक और बालिकाओंका जीवन बरबाद होनेसे बचाना । २-साधुसंस्थामें बढ़ते हुए कालुष्यको जहांतक हो सके कम करना । ३-सामाजिक जीवनकी पवित्रताको रक्षा करना। मेरे एतद्विषयक सभी प्रयत्नोंका लक्ष्य ऊपर कही गई तीन बातें हैं ।
सुधारके लिये जब कोई व्यक्ति खड़ा होता है तो साम्प्रदायिक द्वषका दोष मढ़कर उसे बदमाम करने तथा कार्यमें बाधा डालनेका प्रयत्न किया जाता है। समझदार पाठकोंसे मेरा निवेदन है कि वे विरोधियोंकी ऐसी बातोपर ध्यान न देकर केवल सुधारकी दृष्टिसे निष्पक्ष विचार करें। वैयक्तिक
आक्षेपोंको सुधारके मामलेमें महत्व न देना चाहिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com