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प्राथकि निवेदन
जो व्यक्ति दुनियादारीके सब धन्धोंको छोड़ कर सारा जीवन मोक्ष मार्ग की आराधनामें लगा देता है, उसे साधु कहते हैं। किसी भी समाज या देशके लिये सच्चे साधुओं का होना गौरवकी बात है। जिस समय मानवसमाज सांसारिक वासनाओंसे अन्धा होकर विनाशके मार्गपर चलने लगता है उस समय साधु ही अपने जीवन तथा उपदेशों द्वारा उसे रोकता है और फिर उन्नति पथ पर स्थिर करता है। भौतिकताके इस युगमें तो सच्चे साधुओंको नितान्त आवश्यकता है । महावीर, बुद्ध, मुहम्मद, क्राइस्ट, नानक शंकर या दयानन्द सरीखा एक भी साधु युगके प्रवाहको बदल सकता है।
जहाँ सच्चे साधुओंका होना राष्ट्र के लिए वरदान है वहाँ ढोंगी साधुओं का होना अभिशाप है। आज भारतवर्ष में साधु वेषधारियोंकी संख्या लगभग सत्तर लाख है। उनमेंसे इने गिने महात्माओंको छोड़कर सबके सब रोगके कीटाणुओंकी तरह देश और जातिका अभिशाप बने हुए हैं। हिन्दूसमाजको अन्ध श्रद्धासे अनुचित लाभ उठाकर वे अपने स्वार्थीकी पूर्ति करते हैं। कपड़ोंके सिवाय उनमें साधुत्वका कोई लक्षण नहीं होता। अकर्मण्यता
और दुराचार उनकी देन हैं। ___ ऐसे ढोंगियोंकी संख्या जितनी कम हो उतना ही अच्छा है । भारतवर्षकी धार्मिक मनोवृत्ति तथा उदाहरण स्वरूप कुछ अच्छे साधुओंका अस्तित्व होनेके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com