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( १२ ) भी अनेक प्रकारके साधु होते हैं अथवा साधुकी तरह रहते हैं वे जोगी कहलाते हैं। इनमें किसी भी जातिका व्यक्ति दोक्षित हो सकता है। योंगियों में भी बहुतसे सम्प्रदाय होते हैं। उनमें कनफटे
और औघड़ मुख्य हैं। वे रुद्राक्षकी माला पहिनते हैं, केवल लंगोटी बांधते हैं अथवा गेरुए रंगके कपड़े पहिनते हैं। सिर पर जटा रखते हैं और मस्तक तथा सारे शरीरमें भभूत रमाते हैं। उनमें से कोई मठमें रहते हैं और कोई घूमते रहते हैं। कनफटोंमें कानके निचले हिस्सेमें लकड़ीकी बाली डाली हुई होती है। उनके नामके अन्तमें नाथ शब्द लगा रहता है। औघड़ोंके नामके साथ दास लगा रहता है। उनके गलेमें काले डोरेमें पिरोई हुई एक लकड़ीकी भोंगली लटकती रहती है। योगियोंमें कुछ तो अच्छे चारित्रवाले तथा संयमी होते हैं, किन्तु अधिकतर अज्ञान, ढोंगी तथा केवल पेट के लिये योग लिए फिरते हैं। ऐसे योगी जब किसी स्त्रीके साथ कौटुम्बिक जीवन बिताने लगते हैं, तो गोसाई, योगी, रावलिया, भरथरी आदि नामोंसे पुकारे जाते हैं। गोसांई बादि जातियां ऐसे ही योगीयोंके कारण बनी हैं।
मारवाड़में हिन्दू साधु दो भागों विभक्त हैं-शैव और वैष्णव । शैव सम्प्रदायके साधु ब्रह्मचारी, संन्यासी, दंडी या परमहंसके रूप में रहते हैं। वैष्णवोंमें रामानुज, रामानंदी, रामस्नेही, स्वामिनारायण और सन्तराम ये मुख्य संप्रदाय हैं। पुष्टिमार्गी अर्थात् वल्लभ संप्रदायके याचार्य घरबारी होते हैं। उनमें सामान्य साधु होते
ही नहीं। स्वामिनारायण संप्रदायके भाचार्य तो घरबारी होते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com