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प्रस्थानपोताना संवत् ६५.४२ ना अपाडना जंकमां नीच मूजब लखे छ:
अशोकना शिलालेखो उपर दृष्टिपात लेखकः-विद्यावल्लभ इतिहासतत्त्वमहीकि आचार्य श्री विजयेन्द्रसूरि; प्रकाशकः श्री यशोविजय जैनग्रन्थमाळा, भावनगर, इ. स. १९३६, किंमत चार आना.
आ नाना पुस्तकर्नु एमां साची ऐतिहासिक दृष्टि होवाने लीधे, अमे घणुं मूल्य आंकीए छीए. वडोदराना डॉ. त्रिभुवनदास लहरचंद शाहे 'प्राचीन भारतवर्ष' नामर्नु पुस्तक लख्यु छे, जेमा आ देशना प्राचीन इतिहासनी सर्वमान्य मान्यताओने छलप्रचुर दलीलोथी उलटाववानो ग्लानिजनक प्रयास करवामां आव्यो छे. उपला पुस्तकना लेखक आचार्य विजयेन्द्रसूरिजी साचुं न कहे छे के “ दाक्तरसाहेबनां जेवां पुस्तको बहार पाडवाथी जैनोने. लाभ थवाने बदले ऊलटी हानि थवानो संभव छे" (जुओ 'किंचिद् वक्तव्य' पृ. ३). मतलब के डा. त्रिमुवनदास शाहनी प्रवृत्ति इतिहासने तथा जैनोने हानिकारक ज छे. ___ डॉ. त्रिभुवनदास शाहनां प्राचीन भारतवर्ष' नामना पुस्तकनी समालोचना करवा माटे आचार्यश्रीए असल अने प्रमाणभूत ऐतिहासिक सामग्रीओ एकठी करवा भांडी हती, पण ए अरसामां — जैन रौप्य महोत्सव अंकमा कायाको न 'संप्रति महाराजना शिलालेखो किंवा पदच्युत नामनो लेख तेओए जोयो अने तेनो ज प्रतिवाद या करवानुं
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