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श्री
अनाथिमुनि
दुनियांनी दृष्टिए अनाथ कही शकाय नहि; पण वास्तविक रीते आ बधा सबंध स्वार्थ पुरता अने श्वासोश्वास सुधीनाज होय छे, एटले आ बधी अनुकूळताओ होवा छतां पण मनुष्य अनाथ रहे छे. खरो समय आवी. लागे छे त्यारे कोण माता अने कोण पिता ? अरे पोतानी गृहलक्ष्मी जेने शास्त्रकारो अोगना तरीके ओळखावे छे ते पण क्षणमात्रमा बंगळी थह जाय छे. ते बखते साधनसंपन्न मनुष्यने पोतानी खरी स्थितिनो यथार्थ ख्याल थाय छे. माटेज महात्मा-पुरुषो खपरतुं कल्याण साधवा माटे उपदेश आपे छे केः
"खंतो दंतो निरारंभो, पब्बइए अणगारियं" खरो सनाथ तो तेज छे के जे क्षणभंगुर संबंधोना मोहपाशमां न फसातां श्रद्धा अने सानपूर्वक आत्मकल्याणनो अविचळ-मार्ग पकडी समस्त जीवात्माओने अभयदान आपे छे.-आवो सचोट उपदेश सांभळतां राजानी आंख उघडी जाय छे, अने सेना, संपत्ति, सत्ता व्हाय तेटला होय तो पण-आखर वखते तहन निरर्थक तेमज बोजारूप नीवडे छे, एम ते कबूल करे छे. . शास्त्रकारो पण कहे छ के
जरा जाव पीडेइ, बाही जाव न बढ़इ ।
जाविंदिया न हायं ति, ताव धम्म समायरे ॥१॥ मतलबके समय होय ते दरम्यान सावधान था जवु एज परमपद पामवानो प्रिय पंथ छे. अन्यथा महात्मा भर्तृहरिजी कहे छे तेम
"सन्दोप्ले भवने तु कूपखनन प्रत्युद्यमः कीदृशः"
चरित्रम्
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