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कालचक्र
जैन विशेषज्ञों ने इस काल चक्र के दो विभाग किये हैं । एक का नाम उत्सर्पिणी काल और दूसरे का नाम अवसर्पिणी काल है । इन दोनों को मिलाने से कालचक्र होता है । ऐसे अनन्त कालचक्र पूर्व में हो चुके हैं और अनन्ते ही भविष्य में होते चले जावेंगे। इसलिये काल का आदि और अन्त नहीं है ऐसा सर्वज्ञों का कथन है । जब उत्सर्पिणी काल अपनी चरम सीमा तक पहुँच जाता है तब अवसर्पिणी काल का प्रारंभ होता है । और
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