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कही वह अपने को भगवानका शिष्य समझने लगा । उसी समय से वह अपनी आजीविका भिक्षावृति से करने लगा ।
भगवान का दूसरा मासक्षतरणका पारणा आनन्द श्रावक के यहां और तीसरा सुदर्शन सेठ के यहां हुआ उनमें भी पूर्ववत पांच द्रव्योंकी वर्षा देवताओं ने की ।
भगवान के चोथे मासच न पारखे का दिन कार्तिक शुक्ल पौर्णिमा समीप आया। उस समय शंकितहृदय गोशालाने भगवान के ज्ञानकी परीक्षा की। उसने भगवान से पूछा 'भगवन् ! आज घर घरमें बार्षिक महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जावेगा, अतः आज मुझे भिक्षा में क्या मिलेगा ? भगवानको तो अच्छा और बुरेका कोई भान न था । तथा साधुके लिये क्या अच्छा क्या बुरा सब बराबर ही है । जैसा भोजन मिला उसीमें संतोष चाहे रूखा हो चाहे सूखा हो मगर निरवय चाहिये । फिरभी भगवान ने उसे उत्तर दिया कि आज तो मुझे सड़ा भोजन मिलना चाहिये | भगवान के इन वचनों को सुन गोश ला ने कुछ उपेक्षा की और भिक्षा के लिये चल दिया । दिनभर घूनने के बाद जब उसे किसीने भोजन न दिया तो शाम के समय एक ग्रहस्थने उसे पुकारकर बासी सड़ा हुआ भोजन दिया । भूख के मारे उसने उसी भोजन से संतोष पाया और भगवान के वचनों में शंका करके मन ही मन पछताने लग्न |
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चौथे मासक्षमण के पूर्ण हो जानेपर जब गोशाला भिक्षार्थ चस्ती में गया हुआ था तब भगवान ने बहां से बिहार कर दिया और कोल्लाक नामक गांव में पधार गये। बहों जाकर उन्होंने बहुल
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