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संसार सुख भोगते हुए रानी त्रिशला गर्भवती हुई। प्रसव के दिवस जब निकट आने लगे तब एक दिन रात्रिके समय आधी जगी हुई आधी सोई हुई अवस्था में रानी त्रिशलाने चौदह स्वप्न देखे । किसी किसी जैन आम्नायवालोंका कथन है कि रानी त्रिशला ने सोलह स्वप्न देखे । उन शुभ स्वप्नों में से (१) पहले उन्हें एक श्वेत हाथी दिखा (२) दूसरेमें वृषभ उनके साम्हने से निकला ( ३) तीसरे में एक केशरी ( सिंह ) देखा ( ४ ) चौथे में लक्ष्मी देवी के दर्शन हुए ( ५ ) पांचवे में खिले सुगंधित पुष्पों की माला नजर आई (६) छटवें में चन्द्र के दर्शन हुए (७) सातवे में सूर्य दीख पड़ा (८) आठवें में फहराती हुई ध्वजा (2) नवमें में कलश (१०) दशवें में खिले हुए कमलों से भरा हुआ तालाब ( ११ ) ग्यारवें में विस्तीर्ण क्षीर सागर अर्थात दूध का समुद्र (१२) बारवें में देव विमान ( १३) तरवे में रत्नोंका ढेर और ( १४ ) चौदवे में उन्होंने निधूम जाज्यज्यमान अग्नि की शिखा देखी । इनमें रत्नजड़ित सिंहासन और धरणेन्द्र का भवन सम्मिलित करने से सोलह स्वप्न हो जाते हैं।
नोट- किसी आम्नाय वालों ने ध्वजा की जगह मछलीके जोड़ेको माना है।
उक्त कथित स्वप्नों को देखकर रानी त्रिशलाकी नींद खुली। वह अपने स्वप्नों के फलोंका विचार करने लगी। वह सोचने लगी कि इन शुभ स्वप्नोंक देखनसे ऐसा प्रतीत होता है कि अब शीघ्र ही अत्याचारों का अन्त होगा। हिंसा, घृणा और पापाचार दुनिया से उठकर उनके स्थान में अहिंसा, प्रेम और विश्व-शांति का साम्राज्य स्थापित होगा । इसी प्रकार जो भी रानी त्रिशला ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com