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जलादी जाती थी), कहीं अजमेघयक्ष (जहां बकरों की बली दी जाती थी ), और कहीं कही तो नरमेघयज्ञ (जहां मनुष्यों तक को भयंकर अग्निज्वालामें भूज दिया जाता था ) भारवर्ष भरमें नित प्रति होने लगे थे। निरपराधी असंख्या प्राणियोंके रुधिर से पृथ्वी सिंचित हो रही थी । सर्वत्र हाहाकार मच रहा था । मक पशुओं का कोई नाता दृष्टि में नहीं पड़ता था। ऐसी भयंकर भीभत्स अवस्था में सारी सृष्टि एक ऐसे महान् आत्मा की राह देख रही थी जो इन मूक प्राणियों को नितप्रतिके दारुण दुःखों से मुक्त कर अभीत करे। ____ इन प्राणियोंकी अभिलाभा पूर्ण हुई। भगवान महावीरने जन्म धारण किया और उक्त सब भयंकर दशाको अपनी बुलंद
आवाज द्वारा शान्तकर धार्मिक और सामाजिक सुधारके साथ भारतवर्षमें पुनः शान्तिका साम्राज्य स्थापित किया। अहिंसा अर्थात् अभयदानका पाठ पढ़ाकर प्राणीमात्रको अभीत अर्थात् निर्भय बनाया। प्रभु महावीरका पवित्र चरित्र बुद्धि अगम्य है। पूर्वीय और पश्चात्य इतिहासकारोंने भगवान महावीरके विषयमें बड़े २ ग्रन्थ निर्माणकर मुक्त कंठसे प्रशंसा उच्चारित की है। अतः उन्हीं भगवान महावीरका संक्षिप्त जीवन चरित्र इस पुस्तकका मूल विषय है, जिसे पढ़कर प्रत्येक आत्मा शान्ति लाभ कर सकती है तथा जिसके पठनसे सारा संसार समय समय पर हिंसाकी धधकती ज्यालासे बचकर अपूर्व शान्तिका चिरकाल तक अनुभव कर सकता है।
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