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अर्थात् गिरनार और विमलांचलादि अर्थात् सिद्धा
चल शत्रुजय पर्वत तीर्थ भी मौजूद थे। ६.-योग वसिष्ट प्रथम वैराग्य प्रकरणमें- राम कहते हैं
नाहं रामो न मेवाञ्छा, भावेषु च न मे मनः ।
शान्तिमास्थातुमिच्छामि चात्मन्येव जिनोयथा ॥ अर्थात्-भगवान रामचन्द्रजो कहते हैं कि 'न मैं राम हूँ,
न मेरी कुछ इच्छा है और न मेरा मन पदार्थों में है; मैं केवल यही चाहता हूँ कि जिनेश्वर देव की
तरह मेरी आत्मा में शांन्ति हो। ७.-मनुस्मृतिः
कुलादिवीजं सर्वेषां प्रथमो विमल वाहनः । चक्षुष्मांश्च यशस्वी वाभिचन्द्रो य प्रसेनजित् ।। मरदेविच नाभिश्च भरतेः कुल सत्तमः । अष्टमो मरूदेव्यां तु नाभेजाति उरु क्रमः ।। दर्शयन् वर्म वीराणां सुरासुर नमस्कृतः ।
नीति त्रितय कर्ता यो युगादौ प्रथमोजिनः ॥ भावार्थ-सर्व कुलों का आदिकारण पहला विमल वाहन
नाम और चक्षुष्मान नाम वाला, यशस्वी अभिचन्द्र
और प्रसेनजित मरुदेवी और नाभिनाम वाला, कुलमें वीरोंके मार्गको दिखलाता हुआ, देवता और दैत्यों से नमस्कार पानेवाला, और युगके आदिमें हकार, मकार, धिक्कार ये तीन प्रकार की नीतिका
रचनेवाला प्रथम जिन भगवान हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com