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________________ प्रकट किया तब महावीर ने उच्च नीचता गुण संबंध । स्त्री जाति आदर्श बने ज्यों वैसे प्रभु ने किये प्रबंध ॥ वस्तु सुभावे धर्म सुलक्षण अत: साध्य सबको निजभाव । साधन बहु विध हैं मत झगड़ो पाकरके यह उत्तम दाव ।। कर्म विकार निजातम गुण से पूर्णरूप से करदो दूर । वीर प्रभु का भव्य बोध यह प्रगटाता है अद्भुत नूर ॥ है अनन्त-धर्मात्मक सच्चा वस्तु मात्र का शुद्ध स्वरूप । अनेकान्त से उसको देखो तब निश्चय होगा अनुरूप ।। यह सिद्धान्त उदार वीर का 'स्याद वाद' कहलाता है। सर्व दर्शनों में सर्वोपरि विजय-परमपद पाता है ।। मानव जविन ही जिनका है उपकारी उपदेश विशेष । स्मरण-स्तव सुखदायक जिनका है यातें मैं करूं हमेश ।। अमर पूर्ण विकशित सद्गुण-पुष्पों की विशद विजय वरमाल । वीर प्रभु को सादर सविनय करूं समर्पण में समकाल ।। ॥ इति ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034732
Book TitleAntim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Vaidmutha
PublisherGulabchand Vaidmutha
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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