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सोचने लगी कि मेरा प्यारा पुत्र रोज ही इतना भूखा रहता होगा। यह मन ही मन अपने भाग्य को कोसने लगी।
इस प्रकार माताका दृष्टिदोष होते ही संयमके पेट में शूलकी पीड़ा आरम्भ हो गयी परन्तु उसके सरल प्रणामोंमें किसी तरहकी वाधा नहीं पहुंची । पेटका दर्द इतना बढ़ गया कि पड़ोसियोंकी कोई भी औषधियां सफल न हुई और अन्तमें उसके मनमें उन्हीं मुनियोंके दर्शनकी शुभ भावना पैदा हुई और उसी दशामें वह अपनी माता धन्याको सदा के लिए पुत्रविहीन करके परलोक को सिधार गया।
अन्त समयके शुभ परिणामोंके कारण संगमकी आत्मा राजग्रही नगरके प्रसिद्ध गोभद्र सेठकी धर्मपत्नी भद्रा के उदर में
आई । गोभद्र बहुत धनवान सेठ थे ' उन्होंने भद्राकी सम्पूर्ण दाद चाह प्रेमपूर्वक पूरी की । प्रसूतिका समय निकट आया और भद्रा ने शुभ घड़ो में एक बात ही सुन्दर होनहार पुत्ररत्नको जन्म दिया। जिसका नाम शालिभद्र रखा गया ।
गोभद्र सेठ बहुत ही धर्मपरायण थे। उनका चित्त सदा लिने श्वर पूजनमें ही लगा रहता था । उनका व्यापार भी चारों ओर फैला हुआ था। इस कारण उन्होंने जगत ख्याति प्राप्त कर ली थी । जब शालिभद्र बड़े हुए तब पिताने उनके विवाहकी सोची। गोभद्रकी ख्याति के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी कन्याका विवाह शालिभद्र के साथ करने की इच्छा करने लगा। गोभद्र के पास अटूट धन था और पुत्र भी सुदृढ़ अवयवोंसे परिपूर्ण बलवान और बह . त्तर कलाओंमें निपुण हो चुका था। इसलिए उसने एकसे एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com