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"एशिया ग्रन्थमाला के इस प्रथम भाग को मैं गुरु श्री विजयशान्ति सूरीश्वरजी महाराज को समर्पित करना चाहता हूँ। भारत में मैंने आपके दर्शन किये और मुझे आपसे शान्ति प्राप्त हुई। आत्मज्ञान की व्याख्या।
अत्यधिक विनम्रभाव से सम्मान के साथ एप्रिल १९४०
जे० एम० राइवीरे
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