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शक्तियों को जो बहुमूल्य समझते हों, उनको वह विभूतियां निकृष्ट स्थान पर पहंचा देती हैं, योगी महात्मा निस्पोहे होते हैं, इसी कारण उनके वचन पर विश्वास होता है, योगियों में आठ प्रकार की सिद्धियां होती हैं, अणिमा, गरिमा आदि इनके अतिरिक्त वाक् सिद्धि भी होती हैं, जो अजपा जाप के अतिरिक्त गुंजारव जाप जो कण्ठ के भाग से भ्रमर गुंजार की तरह करते हैं उनको वाक् सिद्धि प्राप्त होती है, जिसके प्रभाव से जिसको जो बात कहते हैं वह प्रायः सिद्ध हो जाती है, और उनका वचन प्रियकारी होता है, जिस पर जन समुदाय को श्रद्धा जम जाती है, ऐसे योगियों का हृदय शुद्धमान और अन्तःकरण निर्मल होता है, उनके कथन में न तो वाक्य चातुर्यता होती है, और न अलंकारी भाषा चाहिए, केवल सादी भाषा थोडे वचन-भावार्थ अधिक हो
और व्यक्ति की समझ समयानुसार कथन हो तो वह सिद्ध होती हैं, जो कार्यक्रमसर शृखला बद्ध उपदेश से सिद्ध नहीं हुआ हो वह अल्प कथन सीधी सादी भाषा द्वारा हो जाता है, इसी को विभूति कहते हैं।
इन सिद्धियों के अतिरिक्त दृष्टि सिद्धि भी होती है, और दृष्टि सिद्धि प्राप्त हो जाने पर बराबर दृष्टि से वह मिलान कर नहीं देखते । नीची दृष्टि रख किसी समय अर्ध खुली दृष्टि से देखते हैं, और वैसी दृष्टि में अति आकर्षण होता है, जब ऐसी दृष्टि सिद्धि होती है तो, हिंसक थलचर आदि भी दृष्टि से दृष्टि मिलते ही स्तब्ध हो जाते हैं, हिंसा प्रवर्ती उन पर नहीं कर सकते और सेवक भाव से खड़े हो जाते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com