________________
इस पुन्य भूमि पर ही नागौर में श्री बादरमलजी समदडिया का जन्म संवत् १९३४ मृगशिर्ष कृष्णा अष्टमी को हुवा था, बाल-काल पूर्ण होने बाद आप गृहस्थ व्यवसाय की ग्रन्थी में आये, घर के संस्कार और जैन धर्म का पाराधन व्रत नियम का पालन यह मनुष्य को उच्च कक्षा पर ले जाता है। भावना बढने से आपने श्री परम पूज्य विजय लक्ष्मणसूरिजी महाराज की सान्निध्यता में उपधान तप किया था, और तब से हो आपकी भावना दीक्षा लेने को थी किन्तु उदय में नहीं आई, आप नित्य सामायिक से अध्यात्म पद आदि का अध्ययन-मनन पूर्वक करते थे। एकदा आप परिवार सहित अचलगढ़ यात्रार्थ गये वहां योगीराज के दर्शन से संतुष्ट हुए। भक्ति देख योग्य प्रात्मा समझ योगीराज ने कहा आनंद में हो, हर्षित हो कहा आनंद है, एक बात चाहता हूँ कि मेरे अंत समय में आप मुझे सहायता देवें, स्वीकृति पाते ही विशेष हर्ष में आ गए, वापसी पर अंत समय जान चुके थे, वहीं से श्री सिद्धिगिरिजी यात्रा का प्रयाण कुटुम्ब सहित किया और बारंबार कहते रहे यह मेरी अंतिम यात्रा है। विशेष भाव भक्ति से यात्रा की, और कहा कि अब घर चलो वहीं से हाथ जोड़ वन्दन किया करेंगे और कुछ दिनों में ही आपकी लघु पुत्री सूरज बाई धर्मपत्नि श्री जिनदासजी साहब कोचर को स्वप्न में श्री योगीराज ने दर्शन देकर कहा कि तेरे पिताजी का पेंसठवां वर्ष लगे बाद मंगसर सुदी चोथ को देहांत होगा। यह समाचार पत्र द्वारा नागौर पहुंचाए गए, परंतु थोड़े दिन बाद विस्मरण हो गये । संयोग से मंगसर विद बारस को आपको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com