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भला चाहँनेसे, कायासे परोपकार करनेसे, शुभप्रवृत्ति करने करानेसे, शय्या, संथारा, आर्सन आदिके देनेसे, जीव पुण्यका बन्ध करता है। ___ मंत्रीराज शरदीकी मौसम आतेही लाखों रुपयोंके कपडे गरीबोंको बांट देते थे । मुनिराजोंको शुद्ध निर्दोष कल्पनीय वस्त्र देनेका तो उनका परम कर्त्तव्य ही था। जहां सुनाजाता कि मनुष्य या पशुओंको पानीकी कुछ तंगी पडती है वहां तत्काल कुए, तालाव खोदाकर प्राणियोंको सुखी करते थे। मंत्रीराजने ऐसे हजारों जलाशय खुदवाये थे, और हजारों ही भागे टूटों की मुरम्मतें करवाई थी। हजारों सरायँ और हजारों धर्मशालाएँ आपने नयी बनवाईथी । आखीर इतना ही कहना बस है कि कलियुगको आपने सत् युगका वेष पहनाकर उसकी शकलको बिलकुल बदल दिया था।
॥ कुछ खास बातें ॥ वस्तुपालतेजपालके अनुपमचरितके विषयमे संस्कृतके अनेक ग्रन्थ मौजूद हैं, जैसे कि-कीर्त्तिकौमुदी १ सुकृतसागर २ वसन्तविलास ३ वस्तुपालतेजपालप्रशस्ति ४ वगैरह वगैरह, परन्तु सबमे बडा ग्रन्थ है-जिनहर्षकविकृत “वस्तुपालचरित्र" इस सविस्तर चरित्रका गुजराती भाषान्तरभी श्रीजैनधर्मप्रसारक सभा भावनगरकी तर्फसे छपचुका है। ___ उपर्युक्त चरित्रग्रंथोंसे और उनके किये कार्योंसे निश्चय होता है कि जैसे चौलुक्यचिन्तामणि महाराज कुमारपाल पके बैन धर्मानुयायी थे, वैसे वस्तुपात तेजपालभी बडे
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