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रही, आखीरमे मरकर उसी अपनी पूर्वभवकी इष्ट राजधानीकी अधिष्ठायक देवी हुई । उसने भाविकालमे म्लेच्छोंके आक्रमणसे अपनी गौर्जरप्रजाको बचानेके लिये, वीरधवलसे खनमे आकर वस्तुपाल तेजपालको मंत्री बनानेका उपदेश किया। __ सुकृतसंकीर्तन काव्यमें लिखा है कि-"कुमारपाल राजाने अपने राज्यवंशधरोंकी और पूर्वकालमे पुत्रसम पालण की हुइ गुर्जरभूमिकी म्लेच्छोंसे रक्षा करानेके लिये देवभूमिसे आकर वीरधवलको स्वप्न दिया कि राज्यके बचावके लिये इन भाग्यवानोंको अपने मंत्री बनालो।" ___ मतलब-इतना तो उभयतः सिद्ध है कि देवकी सहायतासे वस्तुपाल बन्धुसहित मंत्रीपदपर प्रतिष्ठित हुए ।
॥प्रभाव ॥ "दुष्टस्य शिक्षा शिष्टस्य पालनम्" इस न्यायको आदर देना उन्हे बडा रुचिकर था, वीरधवलके अधिकारियोंमे एक आदमी ऐसा षड्यंत्री था कि-उससे तमाम राजसभा खौफ खाती थी। किसी किसी वक्त वह राजाको भी लाल आंख दिखाकर दबा देता था, उसकी अन्यायवृत्तिको जानकरभी कोई कुछ नहीं बोल सक्ता था। परन्तु-"सन्मार्गस्खलनाद्भवन्ति विपदः प्रायः प्रभूणामपि" इस महावाक्यसे उसके सहायकही उसे कष्टग्रस्त करनेकी कोशिश करने लगे। सेनाके मुख्य मुख्य आदमी वस्तुपालके पूर्ण रीतिसे अनयायी थे, देवताकी सहायतासे यह इस. पदपर बैठे थे तो
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